LORD VISHNU LAXMI

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Sunday, July 1, 2012

स्त्री स्वयं एक कला है

स्त्री है  तो दुनिया में श्रंगार बचा है ,प्रेम का भाव बचा है ,घृणा सर नहीं उठा पाती ,फिर भी अफ़सोस ...............
भ्रूण -हत्याएं बढती जा रही हैं ।सवाल बस इतना है  कि  हम  जीवन जीना चाहते हैं ? कैसी कुदरत चाहते हैं
जो स्त्री के बिना सोची जा रही है ,मागी जा रही है , हमारे द्वारा इच्छित है ? .............अमिताभ

Tuesday, May 15, 2012

गति है तो समय है


समय प्रकृति में अपनी नेसर्गिक अवस्था में व्याप्त है और अनवरत रूप से
गतिशील भी है|इसे देखा नहीं जा सजाता,पर इसकी गणितीय  व्याख्या
की जा सकती है|वैज्ञानिक समीकरणों की माने तो एक गति में चलने से
समय के पार भी जाया जा सकता है|रोजमर्रा की जिन्दगी में समय का
महत्व इतना अधिक है कि जिन्दगी को खुशियों,उपलब्धियों व् संवेदनाओ
के जरिये नहीं आँका जाता,बल्कि हम समय के फीते से इसे नापने लगते
हैं इससे जुडी कई बातों को समय के लिहाज से ही परखते समझते
है| .................देवाशीष प्रसून

Monday, May 14, 2012

भक्त के सच्चे ह्रदय की पुकार भगवन अवश्य सुनते हैं |


अच्छी स्थिति में भी  भगवान् पर भरोसा  नहीं होता तब साधन की शिथिलता में तो हो ही कहाँ से,परन्तु अब ज्यादा निराशा नहीं होती|
सो भगवान् पर भरोसा तो अच्छी-बुरी सभी स्थितियों में रखना चाहिए
इसके सिवा और सहारा ही क्या है?बलवान और निर्बल --सभी के बल
एक भगवान् ही हैं , परन्तु अपने को वास्तव में निर्बल मानकर  भगवान्
के बल पर भरोसा  रखने वाले का बल तो भगवान् हैं , इस भगवान् के बल
को पाकर वह अति निर्बल भी महान बलवान हो सकता है |

Sunday, May 13, 2012

साथी बोलो है क्या साहस ..........

कुछ लोग बहुत ज्यादा डरते है और इसके चलते हिम्मत छोड़ देते हैं और कूदने से पहले पसीना- पसीना हो जाते हैं, उनके हाथ पैर सुन्न होने लगते हैं और चूँकि वे अभी विमान के बोर्ड पर ही होते है, लिहाज़ा कूदने से मन कर देते हैं|दूसरी तरह के लोग निर्भीक होते हैं,कोई डर नहीं दिखाते,न पसीने से तरबतर होते हैं, न उनकी आवाज़ कपकपाती है| बहुत शांति के साथ हवा में छलांग लगा देते हैं,उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं होती|तीसरी तरह के लोग कूदने से पहले डरे जरुर होते है ,लेकिन जब हवा में कूदने का समय आता है तो झिझकते नहीं.........जय कुमारEdit

जीवन की राह प्रभु की ओर|


बड़े शहरों को जोड़ने वाले हायवे में दो सड़कें होती है -एक आने की और दूसरी जाने की| बीच में हर १५-२० कि मी पर हायवे कि सोनो सड़कों के बीच एक कट आता है जहा से आप अपने वाहन को मोड़कर दिशा बदल सकते है ऐसे ही मानव जीवन में दो दिशाए है एक माया कि और दूसरी प्रभु की| माया की दिशा पर चलते हुए इसका अंत बहुत भयावह है लेकिन प्रभु मार्ग की दिशा पर चलते हुए मनुष्य प्रभु का ही होजाता है ---- कल्याण से साभार

अहंकार मन को कमजोर बनाता है|


जीवन एक शब्द नहीं है| यह एक वाक्य है| इसे  आजीवन कारावास मत बना लीजिये| जीवन जीने का अर्थ है जुड़ना,सम्बंधित होना| प्रत्येक सम्बन्ध के तीन पहलू हैं, सम्बन्ध बनाने वाला, सम्बंधित, सम्बन्ध | जब कोई सम्बन्ध समाप्त होता है, तो जीवन भी समरस होता है,वर्ना इसके विपरीत होता है|समरस होने की कला हमें धर्म सिखाती है -- स्वामी सुखबोधानन्द जी महाराज

Sunday, March 4, 2012

घर के बाहर नए आसमान की तलाश

धरती की कोख में रोपकर एक बीज हम मांगेंगे आकाश से, एक बूंद एक दाना ऐसा जो, भर
सके करोड़ों का पेट, भरपेट जो हो अपना, जिसके गर्भ से आती हो मुट्टी की गंध अपनी सी।
कभी राजस्थान की चौपालों पर बड़ा सा घूँघट काढ़कर एक कोने में बैठी महिला सरपंच मूकदर्शक
बनी पंचायत की कार्यवाही देखा करती थी,लेकिन अब ये बीते जमाने की बात हो गयी है।महिला
सरपंचों द्वारा उनकी पंचायत में किये गए कर्यों की चर्चा अब दूर-दूर तक है............गीता यादव

स्त्रियाँ तो बदलीं,क्या पुरुष भी..........

स्त्रियों में तो बदलाव आया है,लेकिन भारतीय पुरुष बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं,इसलिए यह कहना ठीक नहीं कि वो बदल गए हैं।वैसे, उनके विचारों और मान्यताओं में काफी परिवर्तन आये
हैं,अब वो ज्यादा संवेदनशील हैं।घर का काम करने में बेइज्जती नहीं समझते।बच्चों कि देखभाल करने करने में भी योगदान देते हैं..............भावना

सूरत पर लिखी कहानी

किसी संस्कृति को अगर समझना है सबसे आसान तरीका है कि आप उस संस्कृति में स्त्रियों के हालात समझने कि कोशिश करें।स्त्रियाँ समाज के सांस्कृतिक चेहरे का दर्पण होती हैं।अगर किसी देश में स्त्रियों का जीवन उन्मुक्त है तो इसका सीधा आशय यह निकल सकता है कि उस देश का समाज एक उन्मुक्त समाज है .......देवाशीष प्रसून

स्त्री स्वयं कला है

स्त्री है तो दुनिया में श्रृंगार बचा है, प्रेम का भाव बचा है,घृणा सिरनहीं उठा पाती, फिर भी अफ़सोस....
भ्रूण-हत्याएं बढती जा रहीं हैं।सबाल बस इतना है कि हम कैसा जीवन चाहते हैं? कैसी कुदरत चाहते हैं, जो स्त्री के बिना सोची जा रही है,मांगी जा रही है,हमारे द्वारा इच्छित है? .......अमिताभ

Sunday, February 5, 2012

भविष्य का ज्ञान

पल भर में ज्ञान व उसे हासिल करने का जरिया पुराना हो जाता है और उसका नया रूप जो
हमें देखने को मिलता है,वह प्राचीन को शामिल तो करता है, लेकिन अपने बाहरी स्वरूप में बिलकुल
अर्वाचीन रहता है।आज का ज्ञान मानव सभ्यता के हजारो साल से जमा होते ज्ञान के साथ इस जमाने की जरूरतों का आविर्भाव भी है...............देवाशीष प्रसून

Friday, February 3, 2012

पारे जैसा तरल भाव

किसी का गरम सामान्य और ठंडा होना उसके अलग-अलग रूप हैं और पारा इन अलग-अलग रूपं से सामंजस्य के लिए अपनी तरलता में बदलाव लता रहता है।ठीक इसी तरह मनोविज्ञान भी कम करता है। साहस, भय, क्रोध,दया प्रेम आदि मनोभावों का मूलभाव है-अपने अस्तित्व की रक्षा करने
का प्रयास करना और इसी प्रयास में कोई कायर निकल जाता है तो कोई साहसी.....देवाशीष प्रसून

डर के आगे जीत है -

हम सबके अपने भय हैं ,जो अलग अलग मनस्थितियों और परिस्थितियों से उपज सकते है| कई बार भय हमारी इच्छाओं से पैदा होते है, कई बार बचपन की कुछ स्मृतियों से, तो कई बार हमारी कमजोरियों से भी,लेकिन सबसे बड़ा सत्य यह है कि कभी न कभी हमारा डर हमारे सामने साक्षात आकर खड़ा हो जाता है .........मयंक

Sunday, January 29, 2012

काम के प्रति हौसला चाहिए

आपके अन्दर अपने काम के प्रति लगन या पागलपन होना जरुरी है,तब ही आप कुछ विशेष कर पायेगे| जिन्दगी में कई बार इंसान अपने आपको एक दोराहे पर खड़ा हुआ पता है,एक रास्ता सीधा होता है और एक रास्ता कठिन| जो कठिन रास्ता चुनता है, वही कुछ कर पाता है .........देवानंद

मेहनत और किस्मत का संग

कहीं न कहीं हम सब किस्मत पर विश्वाश करते हैं,लेकिन मेहनत न हो तो किस्मत जैसी कोई
चीज काम नहीं करती।कठिन मेहनत करके ही भाग्य पर भरोसा कर सकते है। बिना कुछ किए
घर बैठे-बैठे किस्मत पर यकीन करना फिजूल है।.................दीपिका पादुकोण

निःस्वार्थ मन से कीजिए

यदि आप समाज या देश के लिए कुछ करना चाहते है, तो मन से एहसान की भावना निकल दें,
क्योंकि ऐसाकरने से आप संकुचित दृष्टि से घिर जायेंगे।इसे आप साधना के रूप में लीजिए।
उसकी शुरुआत एक प्रतिशत से कीजिए।................

Sunday, January 15, 2012

साथी बोलो है क्या साहस

 कुछ लोग बहुत ज्यादा डरते है और इसके चलते हिम्मत छोड़ देते हैं और कूदने से पहले पसीना- पसीना हो जाते हैं, उनके हाथ पैर सुन्न होने लगते हैं और चूँकि वे अभी विमान के बोर्ड पर ही होते है, लिहाज़ा कूदने से मन कर देते हैं|दूसरी तरह के लोग निर्भीक होते हैं,कोई डर नहीं दिखाते,न पसीने से तरबतर होते हैं, न उनकी आवाज़ कपकपाती है| बहुत शांति के साथ हवा में छलांग लगा देते हैं,उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं होती|तीसरी तरह के लोग कूदने से पहले डरे जरुर होते है ,लेकिन जब हवा में कूदने का समय आता है तो झिझकते नहीं.........जय कुमार

साहस से मिलती है मंजिल

कुछ पाकर कुछ खो देने का डर, कुछ ना पा सकने का भय, जिन्दगी के पटरी से उतर जाने की
चिंता.....इन्हीं छोटे-छोटे दरों से घिरी रहती है जिन्दगी,लेकिन जिस वक़्त हम ठान लेते हैं......कुछ
नया करना है,तभी जन्म लेता है साहस| और फिर कदम कभी नहीं रुकते|मंजिलों तक ले जाता है सिर्फ साहस| कोई भी संकल्प होंसले के बिना नहीं पूरा होता...............जय कुमार

घर आने की तरह है प्रार्थना............

मैं प्रार्थना को चुम्बक की तरह महसूस करती हूँ| जो बिखरी हुई ऊर्जा को एकत्र करता है, इसलिए
मैं सुबह, शाम और जरुरत महसूस होने पर किसी भी समय पूजा-प्रार्थना करती हूँ|इससे मुझे शक्ति मिलती हमरी नज़र में प्रार्थना का मतलब घर आने जैसा है...............नदीन क्रीजबर्गर

डर को कहिये अलविदा.........................

जिस्म की चोट से आप उबर गए हैं| असफलता का डर आपने मन से निकालदिया है|बारी है अगले
चरण की|अब पूरे व्यक्तित्व को डर से मुक्त कीजिये| सोचिये- जो होगा, वह अच्छा होगा और अच्छा न भी हुआ तो फिर प्रयास करेंगे| निश्चित तौर पर आपका व्यक्तित्व इस्पात जैसा होगा| आप भय मुक्त
बनेगे और बड़े संकल्प भी साकार हो सकेंगे|आपकी राहें खुली-खुली,डर से अलग, मंजिल की तरफ
साफ़ देखने वाली बनेगी................अमिताभ

Friday, January 6, 2012

सभ्यता-संस्कृति से परिचित न होने के दुष्परिणाम

जब माता -पिता ही अपनी सभ्यता-संस्कृति से परिचित नहीं होंगे तो यहीं पर संस्कृति से जुड़ा
भटकाव शुरू हो जायेगा.....पीढ़ियों में टकराव का आधार यही है कि हम अपनी परवरिश में अपनी
सभ्यता-संस्कृति की जगह दूसरी संस्कृति को लाते हैं......जब तक हम ये समझते हैं कि दूसरी संस्कृति के पीछे भाग कर हमने  अपने बच्चों को क्या गलत बातें बता दीं,तब तक इतनी देर हो चुकी होती है कि सुधार कि कोई गुन्जाईस नहीं रह जाती....................अमृता अय्यर

आँचल तेरा खुशियों की फुलवारी

मनुष्य को ईश्वर ने उसका सबसे बड़ा गुण दिया है, जिसे हम सभी मानवता कहते है|
यह सृष्टि केवल इसी गुण के कारण खुशहाल है,लेकिन हमारे भीतर के इस गुण को
सींचकर पौधे से वृक्ष में परिवर्तित करने वाली माँ होती है| माँ का आंचल खुशियों की
फुलवारी होता है|