स्त्री है तो दुनिया में श्रृंगार बचा है, प्रेम का भाव बचा है,घृणा सिरनहीं उठा पाती, फिर भी अफ़सोस....
भ्रूण-हत्याएं बढती जा रहीं हैं।सबाल बस इतना है कि हम कैसा जीवन चाहते हैं? कैसी कुदरत चाहते हैं, जो स्त्री के बिना सोची जा रही है,मांगी जा रही है,हमारे द्वारा इच्छित है? .......अमिताभ
भ्रूण-हत्याएं बढती जा रहीं हैं।सबाल बस इतना है कि हम कैसा जीवन चाहते हैं? कैसी कुदरत चाहते हैं, जो स्त्री के बिना सोची जा रही है,मांगी जा रही है,हमारे द्वारा इच्छित है? .......अमिताभ
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