देखिये कि आज हमारे सम्बन्ध क्या हो गए है-- एक क्लेश,एक संघर्ष,एक पीड़ा,या एक आदत?अगर हम किसी एक भी व्यक्ति के साथ अपने संबंधो को पूरी तरह समझ लें तो शायद यह सम्भावना बन जाये कि फिर हम ओरों के साथ अर्थात समाज के साथ अपने संबंधों को भी समझ पायेगे|यदि आप किसी एक के भी साथ अपने सम्बन्धों को समझ पाने में अक्षम रहते है तो फिर समाज के साथ,पूरी मानव जाति के साथ अपने संबंधों को कैसे समझ पायेगे|और कही उस एक के साथ आपके सम्बन्ध यदि आवश्यकता पर या तुष्टि के लिए आधारित हुए,तो फिर आपका सम्बन्ध समाज के साथ भी वैसा ही होगा और इस प्रकार उस एक के साथ चलता हुआ झगड़ा बाकियों के साथ भी होगा|तो क्या किसी एक के साथ या अनेक के साथ बिना किसी मांग के साथ रहना संभव है?-अरुण लाल
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