LORD VISHNU LAXMI

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Friday, December 9, 2011

स्वप्न तुम सत्य हो..................

बंद पलकों के पीछे कई ख्वाब उभरते हैं|आँखें खुलते ही झट टूट जाते हैं ये सपने,तितली के परों सरीखे|ज्यों गुलाब की पंखुरी पर ओस की एक मोती-सी बूंद हो|किसी आशिक का दिल हो विरह
में तडफता हुआ| सपने क्या हैं? क्या ये बात सही है कि जिसकी जैसी सोच होती है, उसे वेसे ही स्वप्न आते हैं| क्या इनका रिश्ता होता है अतीत, पिछले जन्म और भविष्य से?सपनो कि अनगिनत
कहानियां हैं और वेसे ही तो हैं रंग-बिरंगे स्वप्न|.....................वैभव कुमार

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