LORD VISHNU LAXMI

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Tuesday, May 15, 2012

गति है तो समय है


समय प्रकृति में अपनी नेसर्गिक अवस्था में व्याप्त है और अनवरत रूप से
गतिशील भी है|इसे देखा नहीं जा सजाता,पर इसकी गणितीय  व्याख्या
की जा सकती है|वैज्ञानिक समीकरणों की माने तो एक गति में चलने से
समय के पार भी जाया जा सकता है|रोजमर्रा की जिन्दगी में समय का
महत्व इतना अधिक है कि जिन्दगी को खुशियों,उपलब्धियों व् संवेदनाओ
के जरिये नहीं आँका जाता,बल्कि हम समय के फीते से इसे नापने लगते
हैं इससे जुडी कई बातों को समय के लिहाज से ही परखते समझते
है| .................देवाशीष प्रसून

Monday, May 14, 2012

भक्त के सच्चे ह्रदय की पुकार भगवन अवश्य सुनते हैं |


अच्छी स्थिति में भी  भगवान् पर भरोसा  नहीं होता तब साधन की शिथिलता में तो हो ही कहाँ से,परन्तु अब ज्यादा निराशा नहीं होती|
सो भगवान् पर भरोसा तो अच्छी-बुरी सभी स्थितियों में रखना चाहिए
इसके सिवा और सहारा ही क्या है?बलवान और निर्बल --सभी के बल
एक भगवान् ही हैं , परन्तु अपने को वास्तव में निर्बल मानकर  भगवान्
के बल पर भरोसा  रखने वाले का बल तो भगवान् हैं , इस भगवान् के बल
को पाकर वह अति निर्बल भी महान बलवान हो सकता है |

Sunday, May 13, 2012

साथी बोलो है क्या साहस ..........

कुछ लोग बहुत ज्यादा डरते है और इसके चलते हिम्मत छोड़ देते हैं और कूदने से पहले पसीना- पसीना हो जाते हैं, उनके हाथ पैर सुन्न होने लगते हैं और चूँकि वे अभी विमान के बोर्ड पर ही होते है, लिहाज़ा कूदने से मन कर देते हैं|दूसरी तरह के लोग निर्भीक होते हैं,कोई डर नहीं दिखाते,न पसीने से तरबतर होते हैं, न उनकी आवाज़ कपकपाती है| बहुत शांति के साथ हवा में छलांग लगा देते हैं,उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं होती|तीसरी तरह के लोग कूदने से पहले डरे जरुर होते है ,लेकिन जब हवा में कूदने का समय आता है तो झिझकते नहीं.........जय कुमारEdit

जीवन की राह प्रभु की ओर|


बड़े शहरों को जोड़ने वाले हायवे में दो सड़कें होती है -एक आने की और दूसरी जाने की| बीच में हर १५-२० कि मी पर हायवे कि सोनो सड़कों के बीच एक कट आता है जहा से आप अपने वाहन को मोड़कर दिशा बदल सकते है ऐसे ही मानव जीवन में दो दिशाए है एक माया कि और दूसरी प्रभु की| माया की दिशा पर चलते हुए इसका अंत बहुत भयावह है लेकिन प्रभु मार्ग की दिशा पर चलते हुए मनुष्य प्रभु का ही होजाता है ---- कल्याण से साभार

अहंकार मन को कमजोर बनाता है|


जीवन एक शब्द नहीं है| यह एक वाक्य है| इसे  आजीवन कारावास मत बना लीजिये| जीवन जीने का अर्थ है जुड़ना,सम्बंधित होना| प्रत्येक सम्बन्ध के तीन पहलू हैं, सम्बन्ध बनाने वाला, सम्बंधित, सम्बन्ध | जब कोई सम्बन्ध समाप्त होता है, तो जीवन भी समरस होता है,वर्ना इसके विपरीत होता है|समरस होने की कला हमें धर्म सिखाती है -- स्वामी सुखबोधानन्द जी महाराज