LORD VISHNU LAXMI

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Sunday, February 5, 2012

भविष्य का ज्ञान

पल भर में ज्ञान व उसे हासिल करने का जरिया पुराना हो जाता है और उसका नया रूप जो
हमें देखने को मिलता है,वह प्राचीन को शामिल तो करता है, लेकिन अपने बाहरी स्वरूप में बिलकुल
अर्वाचीन रहता है।आज का ज्ञान मानव सभ्यता के हजारो साल से जमा होते ज्ञान के साथ इस जमाने की जरूरतों का आविर्भाव भी है...............देवाशीष प्रसून

Friday, February 3, 2012

पारे जैसा तरल भाव

किसी का गरम सामान्य और ठंडा होना उसके अलग-अलग रूप हैं और पारा इन अलग-अलग रूपं से सामंजस्य के लिए अपनी तरलता में बदलाव लता रहता है।ठीक इसी तरह मनोविज्ञान भी कम करता है। साहस, भय, क्रोध,दया प्रेम आदि मनोभावों का मूलभाव है-अपने अस्तित्व की रक्षा करने
का प्रयास करना और इसी प्रयास में कोई कायर निकल जाता है तो कोई साहसी.....देवाशीष प्रसून

डर के आगे जीत है -

हम सबके अपने भय हैं ,जो अलग अलग मनस्थितियों और परिस्थितियों से उपज सकते है| कई बार भय हमारी इच्छाओं से पैदा होते है, कई बार बचपन की कुछ स्मृतियों से, तो कई बार हमारी कमजोरियों से भी,लेकिन सबसे बड़ा सत्य यह है कि कभी न कभी हमारा डर हमारे सामने साक्षात आकर खड़ा हो जाता है .........मयंक