LORD VISHNU LAXMI

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Sunday, January 29, 2012

काम के प्रति हौसला चाहिए

आपके अन्दर अपने काम के प्रति लगन या पागलपन होना जरुरी है,तब ही आप कुछ विशेष कर पायेगे| जिन्दगी में कई बार इंसान अपने आपको एक दोराहे पर खड़ा हुआ पता है,एक रास्ता सीधा होता है और एक रास्ता कठिन| जो कठिन रास्ता चुनता है, वही कुछ कर पाता है .........देवानंद

मेहनत और किस्मत का संग

कहीं न कहीं हम सब किस्मत पर विश्वाश करते हैं,लेकिन मेहनत न हो तो किस्मत जैसी कोई
चीज काम नहीं करती।कठिन मेहनत करके ही भाग्य पर भरोसा कर सकते है। बिना कुछ किए
घर बैठे-बैठे किस्मत पर यकीन करना फिजूल है।.................दीपिका पादुकोण

निःस्वार्थ मन से कीजिए

यदि आप समाज या देश के लिए कुछ करना चाहते है, तो मन से एहसान की भावना निकल दें,
क्योंकि ऐसाकरने से आप संकुचित दृष्टि से घिर जायेंगे।इसे आप साधना के रूप में लीजिए।
उसकी शुरुआत एक प्रतिशत से कीजिए।................

Sunday, January 15, 2012

साथी बोलो है क्या साहस

 कुछ लोग बहुत ज्यादा डरते है और इसके चलते हिम्मत छोड़ देते हैं और कूदने से पहले पसीना- पसीना हो जाते हैं, उनके हाथ पैर सुन्न होने लगते हैं और चूँकि वे अभी विमान के बोर्ड पर ही होते है, लिहाज़ा कूदने से मन कर देते हैं|दूसरी तरह के लोग निर्भीक होते हैं,कोई डर नहीं दिखाते,न पसीने से तरबतर होते हैं, न उनकी आवाज़ कपकपाती है| बहुत शांति के साथ हवा में छलांग लगा देते हैं,उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं होती|तीसरी तरह के लोग कूदने से पहले डरे जरुर होते है ,लेकिन जब हवा में कूदने का समय आता है तो झिझकते नहीं.........जय कुमार

साहस से मिलती है मंजिल

कुछ पाकर कुछ खो देने का डर, कुछ ना पा सकने का भय, जिन्दगी के पटरी से उतर जाने की
चिंता.....इन्हीं छोटे-छोटे दरों से घिरी रहती है जिन्दगी,लेकिन जिस वक़्त हम ठान लेते हैं......कुछ
नया करना है,तभी जन्म लेता है साहस| और फिर कदम कभी नहीं रुकते|मंजिलों तक ले जाता है सिर्फ साहस| कोई भी संकल्प होंसले के बिना नहीं पूरा होता...............जय कुमार

घर आने की तरह है प्रार्थना............

मैं प्रार्थना को चुम्बक की तरह महसूस करती हूँ| जो बिखरी हुई ऊर्जा को एकत्र करता है, इसलिए
मैं सुबह, शाम और जरुरत महसूस होने पर किसी भी समय पूजा-प्रार्थना करती हूँ|इससे मुझे शक्ति मिलती हमरी नज़र में प्रार्थना का मतलब घर आने जैसा है...............नदीन क्रीजबर्गर

डर को कहिये अलविदा.........................

जिस्म की चोट से आप उबर गए हैं| असफलता का डर आपने मन से निकालदिया है|बारी है अगले
चरण की|अब पूरे व्यक्तित्व को डर से मुक्त कीजिये| सोचिये- जो होगा, वह अच्छा होगा और अच्छा न भी हुआ तो फिर प्रयास करेंगे| निश्चित तौर पर आपका व्यक्तित्व इस्पात जैसा होगा| आप भय मुक्त
बनेगे और बड़े संकल्प भी साकार हो सकेंगे|आपकी राहें खुली-खुली,डर से अलग, मंजिल की तरफ
साफ़ देखने वाली बनेगी................अमिताभ

Friday, January 6, 2012

सभ्यता-संस्कृति से परिचित न होने के दुष्परिणाम

जब माता -पिता ही अपनी सभ्यता-संस्कृति से परिचित नहीं होंगे तो यहीं पर संस्कृति से जुड़ा
भटकाव शुरू हो जायेगा.....पीढ़ियों में टकराव का आधार यही है कि हम अपनी परवरिश में अपनी
सभ्यता-संस्कृति की जगह दूसरी संस्कृति को लाते हैं......जब तक हम ये समझते हैं कि दूसरी संस्कृति के पीछे भाग कर हमने  अपने बच्चों को क्या गलत बातें बता दीं,तब तक इतनी देर हो चुकी होती है कि सुधार कि कोई गुन्जाईस नहीं रह जाती....................अमृता अय्यर

आँचल तेरा खुशियों की फुलवारी

मनुष्य को ईश्वर ने उसका सबसे बड़ा गुण दिया है, जिसे हम सभी मानवता कहते है|
यह सृष्टि केवल इसी गुण के कारण खुशहाल है,लेकिन हमारे भीतर के इस गुण को
सींचकर पौधे से वृक्ष में परिवर्तित करने वाली माँ होती है| माँ का आंचल खुशियों की
फुलवारी होता है|