LORD VISHNU LAXMI

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Sunday, March 4, 2012

घर के बाहर नए आसमान की तलाश

धरती की कोख में रोपकर एक बीज हम मांगेंगे आकाश से, एक बूंद एक दाना ऐसा जो, भर
सके करोड़ों का पेट, भरपेट जो हो अपना, जिसके गर्भ से आती हो मुट्टी की गंध अपनी सी।
कभी राजस्थान की चौपालों पर बड़ा सा घूँघट काढ़कर एक कोने में बैठी महिला सरपंच मूकदर्शक
बनी पंचायत की कार्यवाही देखा करती थी,लेकिन अब ये बीते जमाने की बात हो गयी है।महिला
सरपंचों द्वारा उनकी पंचायत में किये गए कर्यों की चर्चा अब दूर-दूर तक है............गीता यादव

स्त्रियाँ तो बदलीं,क्या पुरुष भी..........

स्त्रियों में तो बदलाव आया है,लेकिन भारतीय पुरुष बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं,इसलिए यह कहना ठीक नहीं कि वो बदल गए हैं।वैसे, उनके विचारों और मान्यताओं में काफी परिवर्तन आये
हैं,अब वो ज्यादा संवेदनशील हैं।घर का काम करने में बेइज्जती नहीं समझते।बच्चों कि देखभाल करने करने में भी योगदान देते हैं..............भावना

सूरत पर लिखी कहानी

किसी संस्कृति को अगर समझना है सबसे आसान तरीका है कि आप उस संस्कृति में स्त्रियों के हालात समझने कि कोशिश करें।स्त्रियाँ समाज के सांस्कृतिक चेहरे का दर्पण होती हैं।अगर किसी देश में स्त्रियों का जीवन उन्मुक्त है तो इसका सीधा आशय यह निकल सकता है कि उस देश का समाज एक उन्मुक्त समाज है .......देवाशीष प्रसून

स्त्री स्वयं कला है

स्त्री है तो दुनिया में श्रृंगार बचा है, प्रेम का भाव बचा है,घृणा सिरनहीं उठा पाती, फिर भी अफ़सोस....
भ्रूण-हत्याएं बढती जा रहीं हैं।सबाल बस इतना है कि हम कैसा जीवन चाहते हैं? कैसी कुदरत चाहते हैं, जो स्त्री के बिना सोची जा रही है,मांगी जा रही है,हमारे द्वारा इच्छित है? .......अमिताभ